नौकरशाही का अर्थ ,परिभाषा ,विशेषताएं या गुण एवं दोष

नौकरशाही शब्द फ्रांसीसी भाषा के  Bureau शब्द से बना है जिसका अर्थ है -लिखने की मेज या डेस्क। इस प्रकार नौकरशाही का अर्थ उस सरकार से है जिसके कर्मचारी केवल कार्यालय में बैठकर कार्य करते हैं आधुनिक युग  यह शब्द अपयश का प्रतीक माना जाता है।

जॉन ए. वेग ने इस बारे में कहा है कि नौकरशाही का अर्थ बदनामी व विकृति के कारण घोटाला, स्वेच्छाचारिता, अपयश तथा तानाशाही होकर रह गया है।

नौकरशाही की परिभाषा

(1) शा के अनुसार,“नौकरशाही में सार्वजनिक अधिकारी कुलीतन्त्र में आराध्यदेव प्रजातन्त्र में मूर्ति-पूजक होते हैं |

(2) एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका– “प्रशासनीय शक्ति का विभागों में केन्द्रित होना तथा उन सभी मामलों में भी जो राज्य के हस्तक्षेप से बाहर है, राज्य के अधिकारियों द्वारा हस्तक्षेप किया जाना।”

(3) कार्ल फ्रेडरिक- “यह उन लोगों के पदसोपान, कार्यों के विशेषीकरण तथा उच्चस्तरीय क्षमता से युक्त संगठन है जिन्हें इन पदों पर कार्य करने के लिये प्रशिक्षित किया गया है।”

(4) लास्की– “नौकरशाही एक ऐसी प्रशासकीय विधी या ढंग है; जो पूर्णरूपेण अधिकारी वर्ग के हाथों में नियन्त्रित रहती है तथा सामान्य जन को अपने अनुसार चलाने के लिये स्वतन्त्र होती है।”

(5) एफ.एम. मार्क्स– “पदसोपान, क्षेत्राधिकार, विशेषीकरण, व्यवसायिक प्रशिक्षण, निश्चित वेतन एवं स्थायित्व नौकरशाही संगठन की विशेषताएँ हैं ।”

(6) व्हाइट के अनुसार– “एक श्रेष्ठ लोक प्रशासन बहुत से तत्त्वों के मिश्रण से बनता है। नेतृत्व संगठन, वित्त आदर्श विधियों से मानव शक्ति हर रूप में बढ़कर है।”

(7) फाइनर के अनुसार- “नौकरशाही प्रशासन का सर्वोच्च महत्त्वपूर्ण तन्त्र है।”

मैक्सवेबर के अनुसार नौकरशाही – मैक्सवेबर नौकरशाही का व्यवस्थित अध्ययन करने वाले प्रथम समाजशास्त्री थे। वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त तथा वैधानिकता और प्रभुत्व सिद्धान्तों ने ही भावी सिद्धान्त का आधार तैयार किया। उन्होंने इसे प्रशासन की तर्कपूर्ण व्यवस्था माना है। उनके मतानुसार संस्थागत मानव व्यवहार में तर्कपूर्णता लाने का सर्वोत्तम साधन नौकरशाही है।

वेबर का नौकरशाही का सिद्धान्त प्रभुत्व के सिद्धान्त का ही एक अंग है। प्रमुत्व का अर्थ है नियन्त्रण की अधिकारिक शक्ति। दूसरे शब्दों में कहें तो वेबर ने यह प्रश्न उठाया कि कैसे एक व्यक्ति दूसरों पर अपना प्रभुत्व जमाता है तथा इसी के उत्तर में यह कहा कि प्रभुत्व का उपयोग यदि किसी भी तरह न्यायसंगत तथा वैध हो तो वह स्वीकार्य हो जाता है। इन्हें दो रूपों में स्पष्ट किया है –

(1) कानूनी सत्ता के रूप में- इस रूप में यह कानून द्वारा स्थापित अवैयक्तिक व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति पद की सत्ता का प्रयोग इस आधार पर करते हैं कि उन्हें अपने पद की सत्ता के दायरे में आदेश देने की औपचारिक वैधता प्राप्त है।

(2) एक संगठन के रूप में- संगठन के रूप में ब्यूरोक्रेसी एक संस्तरणबद्ध संगठन है, जिसकी रचना तार्किक ढंग से बहुत से ऐसे व्यक्तियों के कार्यों के समीकरण के लिये की गई है जो वृहद स्पष्ट पर प्रशासनिक दायित्वों व संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति में लगे हैं।

नौकरशाही की विशेषताएँ अथवा गुण

(1) निश्चित कार्य विधियाँ

नौकरशाही संगठन में कार्यविधियाँ पूर्णतया निश्चित रहती हैं। संगठनों के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये जो भी क्रियाएँ करनी होती हैं , उनकी रीतियाँ पूर्व निर्धारित होती हैं समस्त कार्य पूर्व निश्चित नियमों के अनुसार किया जाता है। ये नियम व प्रक्रियाएं कुल मिलाकर स्थिर और व्यापक होते हैं। विशेष बल इस बात पर रहता है कि कार्यकुशलता एक-सी बनी रहे, लक्ष्य का औचित्य अवैयक्तिक तरीकों से सिद्ध किया जाता है, व्यवहार नियमों के अन्तर्गत एक सिलसिलेवार अनुशासन व नियंत्रण होना चाहिये।

(2) स्पष्ट श्रम विभाजन

इस संगठन के सभी कर्मचारियों के बीच कार्य का सुनिश्चित तरीके से स्पष्ट वितरण किया जाता है तथा प्रत्येक कर्मचारी को अपना कार्य प्रभावशाली रूप से सम्पन्न करने के लिये उत्तरदायी बनाया जाता है।

(3) प्रशिक्षित वर्ग

आधुनिक समाज का निर्माण एक प्रकार से नौकरशाह या लोक सेवक ही करते हैं। इसे केवल उसी दिशा में पूर्ण किया जा सकता है, जबकि “वह दिये गये कार्य को पूरा करने की प्रक्रिया द्वारा ही किया जाए। प्रत्येक देश में लोक सेवकों को प्रशिक्षण देने की आवश्यक व्यवस्था को अपनाया जाता है। प्रशिक्षण औपचारिक व अनौपचारिक दोनों रूपों में दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य होता है कि प्रशिक्षण देकर लोक सेवकों को योग्य तथा सक्षम बनाया जाये इस प्रकार प्रशिक्षण का उद्देश्य आदर्श प्रवृत्तियों पर आधारित होता है।

(4) पद सोपानक्रम

ब्यूरोक्रेसी प्रणाली पद सोपान पद्धति पर आधारित होती है। इसमें कर्मचारियों के बीच उच्च अधीनस्थ सम्बन्ध पाया जाता है। आदेश के सूत्र ऊपर से नीचे को प्रवाहित होते हैं। संगठन का प्रशासकीय ढाँचा एक पिरामिण्ड के समान रहता है। उच्चतम व निम्नतम अधिकारियों के बीच कई सोपान रहते हैं। हर काम उचित मार्ग से होकर गुजरता है ।

(5) लालफीताशाही

ब्यूरोक्रेसी में लालफीता शाही अथवा अनावश्यक औपचारिकता पायी जाती है। लालफीताशाही के बारे में कहा जाता है ‘विनियमों के पालन में आवश्यकता से अधिक बारीकी। इसमें हर कार्यवाही ‘उचित मार्ग’ से की जाती है। प्रशासकीय अधिकारी प्रत्येक काम में कठोरता के साथ नियमों का पालन करते हैं, लचीलेपन के साथ नहीं।

(6) स्थायी रूप

इसकी सेवाएँ सदैव स्थायी होती हैं। इस स्थायित्व के कारण वे सुविधानुसार शासन के कार्यों का संचालन करते हैं। स्थायित्व के फलस्वरूप वे निर्भय होकर नियमों का परिपालन करते हैं। ऐसी स्थिति में उनको किसी भी प्रकार के राजनीतिक दबाव की चिन्ता नहीं होती है।

(7) उत्तरदायित्व का भाव

नौकरशाही के जन प्रतिनिधियों को हमेशा इच्छाओं व आकांक्षाओं का आदर प्रशासकीय नियमों के अन्तर्गत रहकर करना पड़ता है। इस भावना के कारण ही उनको अपने अधिकारों, कर्त्तव्यों तथा उत्तरदायित्व की जानकारी मिलती रहती है।


(8) वेतन व पेंशन अधिकार

ब्यूरोक्रेसी की आय के आधार पर कर्मचारियों का वेतन तय नहीं किया जाता, वरन् पदसोपान में उनका स्तर पद के दायित्व, सामाजिक स्थिति आदि बातों का ध्यान रखकर ही उनका वेतन व पेंशन तय की जाती है।

एफ. एम. मार्क्स ने नौकरशाही के 4 रूपों की चर्चा की है-

(1) जातीय
जब प्रशासकीय तथा राजनीतिक सत्ता एक ही वर्ग विशेष के हाथों में हो तब जातीय नौकरशाही मानी जाती है। जातीय नौकरशाही एक वर्ग या जाति विशेष है। इस प्रकार की नौकरशाही अल्पतन्त्रीय राजनीतिक व्यवस्थाओं वाले देशों में व्यापक रूप से प्रचलित है।

(2) अभिभावक
इस प्रकार की नौकरशाही जनहित के लिये कार्य करती है। इसके अन्तर्गत जो भी कार्य किये जाते हैं उन सबके पीछे लोगों के कल्याण की भावना छिपी रहती है। वे न्याय एवं लोक कल्याण के संरक्षक होते हैं।

(3) संरक्षक
यह नौकरशाही का वह रूप है जिसमें लोक संगठन को नियुक्ति उनकी तुलनात्मक योग्यता के आधार पर नहीं की जाती वरन् नियोक्ता और प्रत्याशियों के राजनैतिक सम्बन्धों के आधार पर की जाती है। इस प्रकार की नौकरशाही में चुनाव में विजयी राजनीतिज्ञ अपने समर्थक को ऊँचे पदों पर नियुक्त करते हैं। संरक्षक नौकरशाही की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें कर्मचारी की भर्ती के समय उसकी शैक्षणिक अथवा व्यवसायिक योग्यता को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता तथा लोक सेवकों का कार्यकाल सुरक्षित नहीं होता, वे अपने पद पर तभी तक कार्य कर सकते हैं जब तक कि उन्हें सत्तार्थ दल का समर्थन प्राप्त हो |

(4)योग्यता

योग्यता पर आधारित नौकरशाही का आधार सरकारी अधिकारी के गुण होते हैं। योग्यता की जाँच के लिये निष्पक्ष तथा वस्तुगत परीक्षाएँ आयोजित की जाती हैं। इसका लक्ष्य लोक-सेवा की कुशलता है। इसका लक्ष्य प्रतिभा के लिये खुला पेशा होता है। सभी सभ्य देशों में नौकरशाही की यह पद्धति प्रचलित है।

मैक्सवेबर का नौकरशाही का सिद्धान्त

मैक्सवेबर ने नौकरशाही को कुछ प्रमुख विशेषताओं के आधार पर स्पष्ट किया।जो इस प्रकार हैं-

(1) संगठन के सभी सदस्यों को कुछ विशेष कार्य सौंपे जाते हैं।
(2) शासन के कार्यों को बाँट दिया जाता है।

(3) कार्यों के पालन हेतु एक निश्चित व्यवस्था का पालन किया जाता है।
(4) सम्पूर्ण ढाँचे में पद सोपान कम पाया जाता है।

(5) कर्मचारियों के वेतन व भत्ते सबकुछ निर्धारित होते हैं।

सिद्धान्त की आलोचना :

(1) मैक्स वेवर ने नौकरशाही की व्यवस्था को आदर्श व्यवस्था माना है जबकि अन्य समाजशास्त्री इसे आदर्श नहीं मानते हैं।
(2) वेबर के इस विचार को लोग कल्पना मानते हैं क्योंकि इसमें व्यक्ति के अनौपचारिक सम्बन्धों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।

नौकरशाही के दोष

नौकरशाही व्यवस्था में निम्न दोष पाए जाते हैं

(1) अधिकारियों का असीमित नियन्त्रण – नौकरशाही में अधिकारियों का नियन्त्रण आवश्यकता से अधिक होता है। इस नियन्त्रण के कारण जनता के मौलिक अधिकारों पर संकट उत्पन्न हो जाता है।

(2) सार्वजनिक नियन्त्रण का अभाव – लोक कर्मचारियों के सम्बन्ध में यह बात स्पष्ट रूप से कही जाती है कि वे प्रभावशाली जन नियन्त्रण की परिधि से बाहर रहते हैं। शासक वर्ग का समर्थन प्राप्त होने की वजह से जनता द्वारा की गई उनके कार्यों की आलोचना का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है

(3) लालफीताशाही – नौकरशाही का एक प्रमुख दोष यह भी है कि इसमें लालफीताशाही पाई जाती है। सार्वजनिक कार्यों में इसी कारण बहुत देर लग जाती है। उच्च कर्मचारी अपने ऊपर कोई उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहते, इसीलिए कार्य को इधर-उधर घुमाते रहते हैं।

(4) प्रजातन्त्रात्मक प्रणाली की विरोधी – यह व्यवस्था प्रजातन्त्रात्मक शासन प्रणाली के भौतिक सिद्धान्तों के विरुद्ध है। इस व्यवस्था में अधिकारी वर्ग धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ा लेता है और कर्मचारी वर्ग सेवक के स्थान पर मालिक बनने का स्वप्न देखने लगते हैं। ऐसी दशा में वे जनता के अधिकारों की भी कोई चिन्ता नहीं करते।

(5) व्यक्तिगत महत्त्व पर बल – नौकरशाही में पदाधिकारी अपने महत्त्व का प्रदर्शन करना चाहते हैं।इस प्रकार यह भी इस प्रणाली का एक दोष है |

(6) वर्गीय चेतना – प्रशासन के अधिकारी अपने आपको समाज में एक विशिष्ट पुरुष मानने लगते हैं। वे समझने लगते हैं कि वे समाज में अन्य के मुकाबले श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार नौकरशाही में शासित एवं शासक नाम के दो वर्ग बन जाते हैं। यह वर्गीय चेतना विघटन को प्रोत्साहन देती है।

(7) व्यक्तिगत स्वाधीनता की विरोधी – नौकरशाही व्यक्तिगत स्वाधीनता की विरोधी है, अत:अधिकारी अपने आत्म-गौरव का प्रदर्शन करने में लगे रहते हैं। वे जनता के मौलिक अधिकारों को महत्त्व नहीं देते और न ही लोक कल्याण की बातें करते हैं। ऐसी दशा में कल्याणकारी राज्य की कल्पना स्वप्न मात्र रह जाती है। नागरिकों को किसी भी प्रकार की स्वतन्त्रता नहीं मिल पाती है।

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