समाजशास्त्र दो शब्दों से मिल कर बना है जिनमें से पहला शब्द ‘सोशियस’ (Socius) लैटिन भाषा से और दूसरा शब्द ‘लोगस‘ (Logas) ग्रीक भाषा: से लिया गया है। ‘सोशियस’ का अर्थ है— समाज और ‘लोगस’ का शास्त्र इस प्रकार ‘समाजशास्त्र’ (Sociology) का शाब्दिक अर्थ समाज का शास्त्र या समाज का विज्ञान है।
जॉन स्टुअर्ट मिल ने ‘Sociology के स्थान पर ‘इथोलॉजी’ (Ethology) शब्द को प्रयुक्त करने का सुझाव दिया और कहा कि ‘Sociology’ दो भिन्न भाषाओं की एक अवैध सन्तान है, लेकिन अधिकांश विद्वानों ने मिल के सुझाव को नहीं माना।
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से हरबर्ट स्पेन्सर (Herbert Spencer) ने समाज के क्रमबद्ध अध्ययन का प्रयत्न किया और अपनी पुस्तक का नाम ‘सोशियोलॉजी’ रखा | सोशियोलॉजी (Sociology) शब्द की उपयुक्तता के सम्बन्ध में हर्बर्ट लिखा है कि प्रतीकों की सुविधा एवं सूचकता उनकी उत्पत्ति सम्बन्धी वैधता से अधिक महत्त्वपूर्ण है स्पष्ट है कि शाब्दिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ समाज (सामाजिक सम्बन्धों) का व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ढंग से अध्ययन करने वाले विज्ञान से है|
जब हम इस प्रश्न पर विचार करते हैं कि समाजशास्त्र क्या है तो विभिन्न समाजशास्त्रियों के दृष्टिकोणों में भिन्नता देखने को मिलती है, लेकिन इतना अवश्य है कि अधिकांश समाजशास्त्री समाजशास्त्र को समाज का विज्ञान’ मानते हैं। समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट करने की दृष्टि से विभिन्न विद्वानों ने समय-समय पर विचार व्यक्त किये हैं। उनके द्वारा दी गयी समाजशास्त्र की परिभाषाओं को प्रमुखतः निम्नलिखित चार भागों में बांटा जा सकता है |
(1) समाजशास्त्र समाज के अध्ययन के रूप में।
(2) समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के अध्ययन के रूप में।
(3) समाजशास्त्र समूहों के अध्ययन के रूप में।
(4) समाजशास्त्र सामाजिक अन्तः क्रियाओं के अध्ययन के रूप में अब इनमें से
प्रत्येक पर हम यहां विचार करेंगे।
सबसे पहले हम समाजशास्त्र को समाज के अध्ययन के रूप में समझेंगे |
संयुक्त परिवार का अर्थ एवं परिभाषा – JOINT FAMILY
(1) समाजशास्त्र समाज के अध्ययन के रूप में
गिडिंग्स, समनर, वार्ड, आदि कुछ ऐसे समाजशास्त्री हुए हैं जिन्होंने समाजशास्त्र को एक ऐसे विज्ञान के रूप में परिभाषित करने का प्रयत्न किया जो सम्पूर्ण समाज का एक समग्र इकाई के रूप में अध्ययन कर सके।
बार्ड (Ward) के अनुसार, “समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।”
निडिंग्स (Giddings) के अनुसार, समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।”
इनके अनुसार समाजशास्त्र समाज का एक समग्र इकाई के रूप में व्यवस्थित वर्णन एवं व्याख्या है।
ओम (Odum) के अनुसार, “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता है।” इन परिभाषाओं के आधार पर यह तो स्पष्ट है कि समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है, परन्तु यहां एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि समाजशास्त्र किस समाज का अध्ययन करता है—मानव समाज का या पशु समाज का अथवा दोनों का।
यहां हमें यह स्पष्टत समझ लेना चाहिए कि समाजशास्त्र के अन्तर्गत मानव समाज का अध्ययन किया जाता है।
जी. डंकन मिचेल (G. Duncan Mitchell) के अनुसार, “समाजशास्त्र मानव समाज के संरचनात्मक पक्षों (Structural Aspects) का विवरणात्मक एवं विश्लेषणात्मक शास्त्र है।”
(2) समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के अध्ययन के रूप में
जहाँ कुछ विद्वानों ने समाजशास्त्र को समाज का विज्ञान माना है, वहीं कुछ अन्य ने इसे सामाजिक सम्बन्धों का व्यवस्थित अध्ययन कहा है, लेकिन समाज के विज्ञान और सामाजिक सम्बन्धों के अध्ययन में कोई अन्तर नहीं है। इसका कारण यह है कि सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था को ही समाज के नाम से पुकारा गया है।
समाजशास्त्र को सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन मानने वाले कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाएं इस प्रकार है
मैकाइवर तथा पेज (Maciver and Page) के अनुसार, समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है. सम्बन्धों के इसी जाल को हम समाज कहते हैं। आपने अन्यत्र लिखा है, “सामाजिक सम्बन्ध मात्र समाजशास्त्र की विषय-वस्तु है।
क्यूबर (J. F. Cuber) के अनुसार, “समाजशास्त्र को मानव सम्बन्धों (Human relationships) के नित नए ज्ञान की शाखा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”
मैक्स वेबर (Max Weber) के अनुसार, “समाजशास्त्र प्रधानतः सामाजिक सम्बन्धों तथा कृत्यों का एक ढांचा है |
” इसी प्रकार के विचारों को व्यक्त करते हुए बान वीज (Von Wiese) ने लिखा है, “सामाजिक समबन्ध ही समाजशास्त्र की विषय-वस्तु का एकमात्र वास्तविक आधार है।”
आरनोल्ड एम. रोज (Arnold M. Rose) के अनुसार, “समाजशास्त्र मानव सम्बन्धों का विज्ञान है ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि समाजशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो सामाजिक सम्बन्धों का व्यवस्थित अ ध्ययन करता है। सामाजिक सम्बन्धों के जाल को ही समाज कहा गया है। मनुष्य पारस्परिक जागरूकता Mutual Awareness) और सम्पर्क (Contact) के आधार पर विभिन्न व्यक्तियों एवं समूहों के साथ अगणित सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करता है।
जब अनेक व्यक्ति और समूह विभिन्न इकाइयों के रूप में एक-दूसरे के साथ सम्बन्धित हो जाते है, तब इन सम्बन्धों के आधार पर जो कुछ बनता है, वही ‘समाज’ (Society)कहलाता है। ऐसे समाज या सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन समाजशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है।
(3) समाजशास्त्र समूहों के अध्ययन के रूप में।
जॉन्सन (Johnson) ने समाजशास्त्र को सामाजिक समूहों का अध्ययन माना है। आपके ही शब्दों में, समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का विज्ञान है…सामाजिक समूह सामाजिक अन्तः क्रियाओं की ही एक व्यवस्था है।
आपकी मान्यता है कि समाजशास्त्र को सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन’ कह देने से काम नहीं चलेगा और हम किसी निश्चित निष्कर्ष पर भी नहीं पहुंच सकेंगे। अतः समाजशास्त्र को सामाजिक समूहों का विज्ञान माना जाना चाहिए।
सामाजिक समूह का अर्थ जॉन्सन के अनुसार केवल व्यक्तियों के समूह से नहीं होकर व्यक्तियों के मध्य उत्पन्न होने वाली अन्त क्रियाओं की व्यवस्था से है।
विभिन्न व्यक्ति जब एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तो उनमें सामाजिक अन्त क्रिया उत्पन्न होती है और इन्हीं अन्तःक्रियाओं के आधार पर समूह बनते हैं। समाजशास्त्र सामाजिक अन्तः क्रियाओं के आधार पर बनने वाले ऐसे सामाजिक समूहों का अध्ययन ही है। जॉन्सन ने समाजशास्त्र में उन्हीं सामाजिक सम्बन्धों को महत्व दिया है जो सामाजिक अन्त क्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
आपने लिखा है, “समाजशास्त्र के अन्तर्गत व्यक्तियों में हमारी रूचि केवल वहीं तक है जहां तक वे सामाजिक अन्त क्रियाओं की व्यवस्था में भाग लेते हैं।” स्पष्ट है कि समूह के निर्माण में सामाजिक अन्त क्रियाएं आधार के रूप में हैं और इन्हीं के आधार पर बनने वाले सामाजिक समूहों का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता है।
(4) समाजशास्त्र सामाजिक अन्तःक्रियाओं के अध्ययन के रूप में
कुछ समाजशास्त्री समाजशास्त्र को सामाजिक अन्त क्रियाओं के अध्ययन के रूप में परिभाषित करते है। इनकी मान्यता है कि सामाजिक सम्बन्धों की बजाय सामाजिक अन्त क्रियाएं समाज का वास्तविक आधार हैं। सामाजिक सम्बन्धों की संख्या इतनी अधिक है कि उनका ठीक से अध्ययन किया जाना बहुत ही कठिन है। अतः समाजशास्त्र में सामाजिक अन्तः क्रियाओं का अध्ययन किया जाना चाहिए।
अन्त क्रिया (Interaction) का तात्पर्य दो या दो से अधिक व्यक्तियों या समूहों का जागरूक अवस्था में एक दूसरे के सम्पर्क में आना और एक दूसरे के व्यवहारों को प्रभावित करना है। सामाजिक सम्बन्धों के निर्माण का आधार अन्त क्रिया ही है। यही कारण है कि समाजशास्त्र को सामाजिक अन्तःक्रियाओं का विज्ञान माना गया है।
गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “व्यापक अर्थ में समाजशास्त्र व्यक्तियों के एक दूसरे के सम्पर्क में आने के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अन्तःक्रियाओं का अध्ययन कहा जा सकता है।
जार्ज सिमेल (George Simmel) के अनुसार, “समाजशास्त्र मानवीय अन्तः सम्बन्धों के स्वरूपों का विज्ञान है।’ उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि समाजशास्त्र सामाजिक अन्तः क्रियाओं का विज्ञान है। कुछ अन्य विद्वानों ने समाजशास्त्र को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है :
मैक्स बेबर (Max Weber) के अनुसार, “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रिया (Social Action) का विश्लेषणात्मक बोध कराने का प्रयत्न करता है।” आपके अनुसार सामाजिक क्रियाओं को समझे बिना समाजशास्त्र को समझना कठिन है। इसका कारण यह है कि जहां समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों एवं सामाजिक अन्तःक्रियाओं का विशेष महत्व है, वहां सामाजिक क्रियाओं को समझे बिना इन दोनों को नहीं समझा जा सकता, स्वयं अन्त क्रियाओं का निर्माण सामाजिक क्रियाओं से ही होता है।
अतः मैक्स वेबर ने समाजशास्त्र में सामाजिक क्रियाओं को समझने पर विशेष जोर दिया है। समाजशास्त्र में सामाजिक क्रिया के अध्ययन को टालकट पारसन्स ने भी काफी महत्व दिया है। आपकी मान्यता यह है कि सम्पूर्ण सामाजिक संरचना, सामाजिक सम्बन्धों, समाज तथा सामाजिक व्यवस्था को ‘क्रिया’ की धारणा के माध्यम से ही समझा जा सकता है।
अपने व्यापक रूप में समाजशास्त्र समाज व्यवस्था (Social System) का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। समाज व्यवस्था में सामाजिक प्रक्रिया, सामाजिक सम्बन्ध, सामाजिक नियन्त्रण, सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक संस्थाएं तथा इनसे सम्बन्धित प्रभाव एवं परिस्थितियां आती है। अ
न्य शब्दों में, समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज व्यवस्था से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों का अध्ययन करता है। उपर्युक्त सभी परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज का एक अध्ययन है |
समग्र इकाई के रूप में अध्ययन करने वाला विज्ञान है। इसमें सामाजिक सम्बन्धों का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। सामाजिक सम्बन्धों को ठीक से समझने की दृष्टि से सामाजिक क्रिया, सामाजिक अन्तःक्रिया एवं सामाजिक मूल्यों के अध्ययन पर इस शास्त्र में विशेष जोर दिया जाता है।
समाजशास्त्र की विशेषताएँ :
1.समाजशास्त्र मे समाज का अध्ययन किया जाता है |
2.समाजशास्त्र सामाजिक संबंधो से सम्बंधित है |
3.समाजशास्त्र के अंतर्गत मानव की प्रकृति और उनके बीच अन्तर्संबंधोका अध्ययन किया जाता है |
4. समाजशास्त्र में सामाजिक क्रिया के कारणों और परिणामों के सम्बन्ध मे जानकारी दी जाती है।
5.समाज एक सावयव है। इस सावयव के दो भाग हैं- बाहरी और आन्तरिक। समाजशास्त्र मानव कि वह शाखा है जो समाज का एक समग्रता के रूप मे अध्ययन करता है।
6.समाजशास्त्र का सम्बन्ध मानव जीवन से हैं। समाजशास्त्र मानव की अन्त: क्रियाओं एवं अन्त:सम्बन्धों का अध्ययन करता हैं। समाजशास्त्र उन अवस्थाओं का अध्ययन करता है जिनमे ये अन्त:क्रियाओं व अन्त:सम्बन्ध उत्पन्न होते है।
7. समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का शास्त्र है।
8. समाजशास्त्र का अध्ययन-क्षेत्र सामाजिक समूह है।
9.समाजशास्त्र मे उन प्रक्रियाओं का भी अध्ययन किया जाता है, जिनके द्वारा समूहों का निर्माण होता है तथा उनमें परिवर्तन होता हैं।
10.समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का विज्ञान है।
समाजशास्त्र वह विज्ञान हैं जिसके माध्यम से सामाजिक पुनर्निर्माण किया जा सकता हैं। इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर उसने सामाजिक पुनर्निर्माण की योजना बनाई थी। साथ ही उसने समाज-वैज्ञानिक को सामाजिक पुनर्निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण पद और कार्य सौंपा था।
हमारे समाज का कोढ़ : दहेज-प्रथा ( Dowry System Essay in Hindi )
This Post Has One Comment