किशोरावस्था का अर्थ एवं परिभाषा | किशोरावस्था जीवनकाल की वह अवधि होती है जब शरीर में ऐसे परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप जनन परिपक्वता आती है, वह किशोरावस्था कहलाती है।
किशोरावस्था किसे कहते हैं:
किशोरावस्था जीवनकाल की वह अवधि होती है जब शरीर में ऐसे परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप जनन परिपक्वता आती है, वह किशोरावस्था कहलाती है।
जन्म से लेकर दस वर्ष की आयु तक बच्चे का विकास धीरे धीरे होता है लेकिन उसके बाद उसके विकास की एक अलग एक अलग प्रक्रिया शुरू होती है जिसमे उसका विकास तेज़ी से होता है |
10 या 11 वर्ष की आयु में एकाएक बच्चे के शरीर की वृद्धि में तीव्रता आती है और साफ दिखाई देने लगती है। किशोरावस्था की आयु 11 वर्ष से प्रारंभ होकर 18 या 19 वर्ष की अवस्था तक होती है।
यह अवस्था ऐसी होती है जब बच्चों पर पूर्ण निगरानी रखनी पड़ती है। उसमें बाहरी ज्ञान एवं अच्छाई-बुराई पैदा होती है, जो बच्चों के विकास में सहायक होती है।यही वह अवस्था होती है जब बच्चे का विकास प्रारंभ होता है | इस अवस्था मे ही वह अच्छाई व बुराई का सबक सीखता है |
बच्चे अच्छी संगति में बैठकर अच्छी बातें सीखते हैं तथा बुरी बातें बुरे बच्चों के साथ खेलकर, बैठकर ,घूमकर तथा अन्य प्रकार से सीखते है। इस अवस्था में बालक का बौद्धिक विकास होता है। किशोरों को टीनेजर्स भी कहा जाता है। लड़कियों में यह अवस्था लड़कों की अपेक्षा एक या दो वर्ष पूर्व हो जाती है,इसका मतलब यह है की लड़कियो का विकास लडको से पहले होने लगता है |किशोरावस्था के अर्थ को स्पष्ट रूप से समझने के लिए इसकी परिभाषा इस प्रकार हैं :
किशोरावस्था की परिभाषा : (kishoravastha ki paribhasha )
कुल्हन के अनुसार,” किशोरावस्था बाल्यकाल तथा प्रौढ़ावस्था के मध्य अत्यधिक परिवर्तन का संक्रमण काल हैं।”
जार्सिल्ड के अनुसार,” किशोरावस्था वह अवस्था है जिससे मनुष्य बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर बढ़ता है।”
एस. ए. कोर्टिस के अनुसार,” किशोरावस्था औसतन 12 वर्ष से 18 वर्ष की आयु तक ही है, जिसके अंतर्गत कामांगों का विकास शारीरिक काम विशेषताओं का प्रकटीकरण लाता हैं।”
ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन के अनुसार,” किशोरावस्था प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में वह काल है, जो बाल्यावस्था के अंत में प्रारंभ होता है और प्रौढ़ावास्था के प्रारंभ में समाप्त होता हैं।”
हैडो कमेटी रिपोर्ट इंग्लैंड के अनुसार,” ग्यारह अथवा बारह वर्ष की आयु में बालकों की नसों में ज्वार उठना शुरू होता है, इसे किशोरावस्था के नाम से जाना जाता है। अगर इस ज्वार का चढ़ाव के समय ही उपयोग कर लिया जाये तथा इसकी शक्ति एवं धारा के साथ-साथ नई यात्रा शुरू कर दी जाये, तो सफलता प्राप्त की जा सकती हैं।
किशोरावस्था की विशेषताए: ( kishoravastha ki visheshtayen )
किशोरावस्था के अर्थ को और अधिक स्पष्टता से समझने के लिए इसको विशेषताएं इस प्रकार हैं :
1.शारीरिक परिवर्तन :
किशोरावस्था की सबसे पहली विशेषता शारीरिक परिवर्तन है | किशोरावस्था मे बालक ,बालिकाओ का शारीरिक विकास तेज़ी से होना प्रारंभ हो जाता है | लडको तथा लडकियों की लम्बाई तेज़ी से बढ़ जाती है ,दाड़ी,मूछे आने लगती है | लडको की आवाज़ भारी व लडकियों की आवाज़ सुरीली हो जाती है |
2.मानसिक विकास
शारीरिक परिवर्तन के साथ साथ मानसिक परिवर्तन भी किशोरावस्था की एक विशेषता है | इस अवस्था मे बालको का मानसिक विकास भी तेज़ी से होता है | बालको के सोचने की शक्ति का विकास तीव्र गति से होता है | किशोरावस्था में बालक तर्क-वितर्क, चितंन एवं समस्या के समाधान हेतु गहरी सोच प्रकट करना शुरू कर देता है।
3.संवेगात्मक विकास :
इस अवस्था मे बालक का संवेगात्मक विकास भी होता है | उसमे भावनात्मक गुणों का विकास होता है |करुणा,क्रोध आदि का विकास भी इसी अवस्था मे होना प्रारंभ होता है |
4.विद्रोही प्रवत्ति :
इस उम्र के बालकों में विचारों मे मतभेद, मानसिक स्वतंत्रता एवं विद्रोह की प्रवृत्ति देखी जा सकती है। इस अवस्था में किशोर समाज में प्रचलित परम्पराओं, अंधविश्वासों के जाल में न फँस कर स्वछंद जीवन जीना पसंद करते है।
5.आत्मकेन्द्रित होना :
इस अवस्था में किशोर दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता है और उनके सोचने का तरीका आत्मकेन्द्रित होता है। उनको इस बात की परवाह होती है कि लोग उनको कैसे देख रहे हैं, उनके बारें में क्या सोच रहे हैं । वह हर वक़्त अपने बारे मे सोचता रहता है और कोशिश करता है की वह सबको पसंद आये ,सबको अच्छा लगे |
6.विचारो मे अस्थिरता :
किशोरावस्था मे बालक का मन अस्थिर होता है ,वह ऐसे निर्णय ले लेता है जो उसके लिए हानिकारक साबित भी हो सकते हैं ,क्योकि उसको सही गलत का ज्ञान होना प्रारभ ही होता है इसलिए वह ज़्यादातर फैसले भावनाओ मे आकर ले लेता है | वे जल्दबाजी में अपनी विशिष्टता को भी खो बैठते हैं। उनको सच बनावटी लगता हैं। अतः वे विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अस्थिरता को प्रकट करते रहते हैं।
7.सामाजिक भावना का विकास :
किशोरावस्था मे बालक समाज के निर्माण व पोषण कार्य के लिए सबसे आगे रहते हैं। वह समाज मे अपने अस्तित्व को ढूँढने लगता है ,उसके अंदर आदर, स्नेह, प्रेम आदि की भावना का विकास होता है।
8.जिज्ञासा :
किशोरावस्था मे बालक का मन जिज्ञासा से भरा होता है | उसके मन मे कुछ कर दिखने का जोश भरा रहता है |
9.नेता की प्रवृत्ति :
इस अवस्था मे किशोरों मे नेता की प्रवृत्ति का विकास होता है | वह अपने आपको अपनी उम्र के बालको का नेता समझने लगता है और चाहता है की सभी उसका कहना माने और उसको अपना नेता मानें |
10.आत्म-सम्मान की भावना :
किशोरावस्था में आत्म-सम्मान की भावना का पूरी तरह उदय होने लगता है। किशोर स्वाभिमानी होते हैं। वे किसी भी कीमत पर अपने स्वाभिमान और आत्मसम्मान की रक्षा करने का प्रयास करते हैं। इस उम्र मे इज्ज़त बेईज्ज़ती का आभास ज्यादा होने लगता है |
11.धार्मिक भावना का विकास :
किशोरावस्था आरम्भ होते ही बालको मे धार्मिक भावना का विकास प्रारंभ हो जाता है | वे धार्मिक क्रिया- कलापों मे रूचि लेना शुरू कर देते हैं | इस प्रकार किशोरावस्था मे धार्मिक भावना का विकास भी होता है |
12.विभिन्न रुचियों का विकास :
किशोरावस्था मे बालक तथा बालिकाएं अपनी अपनी रूचि के अनुरूप अलग अलग खेलो ,क्रिया -कलापों मे भाग लेना शुरू कर देते हैं ,जैसे लडको को क्रिकेट ,खेलो आदि मे रूचि होना प्रारंभ हो जाती है तथा लडकियों मे संगीत ,ड्रामा आदि मे रूचि लेना आरम्भ हो जाता है |
13.संवेदनशीलता :
इस अवस्था मे किशोरों का सवभाव संवेदनशील हो जाता है | छोटी छोटी बातें भी उनको जल्दी प्रभावित करने लगती हैं |
14.अन्धविश्वास से दूर :
जब बालक किशोरावस्था मे कदम रखता है ,तब उसके अन्दर किसी प्रकार के अन्धविश्वास का स्थान नहीं होता है | इसके साथ साथ वह धर्म ,और जात पात के बंधन को भी नहीं मानता है |
15.आत्मनिर्भरता की भावना का विकास :
किशोरावस्था मे बालको मे आत्मनिर्भर होने की भावना का विकास होता है | वह किसी पर निर्भर न रहकर अपने पैरो पर खड़ा होना चाहता है |
16..आक्रोश एवं हिंसक प्रवृत्ति :
किशोरावस्था का समय ऐसा होता है जिसमें बालक एवं बालिका मे इतने ज्यादा परिवर्तन होते हैं कि उनके मानसिक शक्ति को प्रभावित करता है जिसके कारण उनमें चिड़चिड़ापन उत्पन्न हो जाता है और वे आक्रोश एवं हिंसक हो जाते हैं।
17.एकता की भावना का विकास :
किशोरावस्था में एकता एवं सहयोग की भावना का विकास भी होता है,जब बच्चे एक दूसरे के साथ मिलजुल कर कहते हैं तो उनमें एकता व सहयोग की भावना पनपती है यह मिलजुलकर खेलने की भावना आगे चलकर मिलजुल कर रहने की भावना में बदल जाती है।
18.शरीर पर अधिक ध्यान देना :
बाल्यावस्था मे बालक अपने शरीर पर ज्यादा धयान नहीं देता है क्योकि वह बहुत छोटा होता है ,किन्तु किशोरावस्था के आरम्भ होने पर किशोरे अपने शरीर पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर देते हैं ,जैसे अपने बालो पर ,वज़न पर ,चेहरे पर ध्यान देना आदि |
19.समाजसेवा की भावना :
किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमे किशोरों मे समाज सेवा करने की भावना का विकास होता है | वे अपने प्रयत्नों से समाज की किसी भी तरह सेवा करना चाहते हैं |
निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है की किशोरावस्था व्यक्ति के जीवन का स्वर्ण काल होता है | अब ये उस पर निर्भर करता है कि वह अपने जीवन को सफल बनाताहै या फिर असफल |
क्योकि इस अवस्था मे व्यक्ति के मन मे अच्छे और बुरे दोनों तरह के ख्याल आते रहते हैं इस प्रकार ये उस पर निर्भर करता है कि वह खुद को किस तरह का बनाएगा |क्योंकि इस काल में बालक एवं बालिकाओं में बदलाव तेजी से देखने को मिलता है इस दौर को जो पार कर लेता है उनका जीवन सुखमय हो जाता है।
किशोरावस्था के 12 लक्षण:
सतर्कता:
किशोरावस्था में व्यक्ति सतर्क रहता है और अपने आसपास की घटनाओं को समझने की क्षमता विकसित करता है।
समानता:
किशोरावस्था में सभी लोगों के साथ समानता का भाव होता है और व्यक्ति द्वारा न्यायपूर्वक व्यवहार किया जाता है।
समर्पण:
किशोरावस्था में व्यक्ति अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहता है और प्रयासों को सफलता तक ले जाने के लिए प्रयास करता है।
सहभागिता:
किशोरावस्था में व्यक्ति सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों में सक्रिय रहता है और समुदाय के साथ सहभागिता दिखाता है।
स्वस्थ आत्मविश्वास:
किशोरावस्था में व्यक्ति का स्वस्थ आत्मविश्वास विकसित होता है और वह अपनी क्षमताओं में विश्वास रखता है।
नवीनता:
किशोरावस्था में नवीनता का भाव विकसित होता है और व्यक्ति नए विचारों, आदर्शों और प्रगति के मार्गों की खोज करता है।
स्वतंत्रता:
किशोरावस्था में व्यक्ति अपने विचारों, निर्णयों और क्रियाओं के प्रति स्वतंत्र होता है।
सहयोग:
किशोरावस्था में व्यक्ति सहयोग करने का आदर्श बनाता है और साथीदारों के साथ मेलजोल का ध्यान रखता है।
स्वावलंबन:
किशोरावस्था में व्यक्ति स्वावलंबी बनता है और अपने स्वयं के जीवन का ध्यान रखता है।
समयप्रबंधन:
किशोरावस्था में समय का अच्छा प्रबंधन करना सीखा जाता है।
विचारशीलता:
किशोरावस्था में मनोबल ऊँचा होता है और विचारशीलता विकसित होती है।
प्रवृत्ति:
किशोरावस्था में व्यक्ति नए अनुभवों और क्षेत्रों के प्रति प्रवृत्त होता है और उन्हें अपनाने के लिए उत्सुक होता है।
समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं– Sociology